अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध का भारत और दुनिया के लिए क्या मतलब है?
संजीव
खुदशाह
अमेरिका
और चीन के बीच व्यापार युद्ध मुख्य रूप से टैरिफ, व्यापार
संतुलन और आर्थिक नीतियों को लेकर चल रहा है। यह 2018 से
शुरू हुआ जब अमेरिका ने चीनी सामानों पर टैरिफ लगाए। इसके जवाब में चीन ने भी
अमेरिकी उत्पादन पर जवाबी टैरिफ बढ़ाया । हाल के वर्षों में खासकर 2025 में यह तनाव और बढ़ा है।
अमेरिका
ने चीनी आयात पर 104% तक टैरिफ लगाए जिसे बाद में
बढ़ाकर 145% तक किया गया। चीन ने इस टैरिफ के जवाब में
अमेरिकी माल पर 34% से 125% तक टैरिफ
बढ़ाए। यानी दोनों देशों ने आपस में एक दूसरे की प्रोडक्ट पर टैरिफ में भारी भरकम
वृद्धि कर दी और खुलेआम टैरिफ वार की घोषणा की जाने लगी। इससे दोनों देशों के शेयर
बाजारों में गिरावट आ गई। अमेरिकी बाजारों में 3% तक की कमी
देखी गई । जबकि चीनी बाजार में 3 से 4%
तक की गिरावट दर्ज हुई। वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएं और अर्थव्यवस्था पर भी इसका
असर पड़ने लगा। अमेरिका का दावा है कि वह व्यापार घाटे को कम करना चाहता है और
घरेलू उद्योगों की रक्षा करना चाहता है। इसी कारण उसे टैरिफ बढ़ाना पड़ रहा है।
लेकिन चीन इसे आर्थिक दबाव के रूप में देखता है और यह कहता है कि यह लड़ाई अंत तक
चलेगी।
यह
टैरिफ युद्ध अन्य देशों जैसे पाकिस्तान और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों की
अर्थव्यवस्थाओं पर बुरा असर कर सकता है। वैश्विक व्यापार विशेषज्ञ आर्थिक
व्यवधानों की चेतावनी भी दे रहे हैं। वर्तमान में दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण
बयान बाजी जारी है। चीन ने कहा है कि वह किसी भी तरह के व्यापार युद्ध के लिए
तैयार है। जबकि अमेरिका अपनी अमेरिका फर्स्ट नीति पर कायम है। यह स्थिति वैश्विक
अर्थव्यवस्था के लिए अनिश्चितता पैदा कर रही है।
भारत पर इसका प्रभाव अवसर
कुछ
विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत के लिए यह एक अवसर है। चीन पर निर्भरता कम करने के लिए
अमेरिका और यूरोपीय देश भारत, वियतनाम, बांग्लादेश जैसी देशों की ओर रुख कर सकते हैं। इससे भारत को निवेश और
उत्पादन के नए मौके मिल सकते हैं। निर्यात में भी वृद्धि हो सकती है। कुछ अमेरिकी
कंपनियां जो पहले चीन से सामान मंगवाती थी। वह भारत से मंगवाने पर विचार कर रही
है। खासकर टेक्सटाइल, फार्मा और आईटी उत्पादों में।
मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा मिल सकता है, मेक इन इंडिया को नई
ऊर्जा मिल सकती है। क्योंकि विदेशी कंपनियां चीन से बाहर आकर भारत में निवेश करने
लगेगी ऐसा अनुमान है। भारत की रणनीति आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा मिल सकता है।
घरेलू उत्पाद को बढ़ावा देकर वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भागीदारी बढ़ाने का
प्रयास किया जाना चाहिए। भारत ने कई बहुपक्षीय समझौते की शुरुआत कर दी है। खासतौर
पर यूएई, ऑस्ट्रेलिया और यूके के साथ नए व्यापार समझौतों पर
बातचित जारी है। यहां भारत कूटनीति का सहारा लेकर चीन के साथ सीमा विवाद और
अमेरिका के साथ सुरक्षा साझेदारी के बीच संतुलन भी बनाने का प्रयास कर सकता है।
भारत कुछ क्षेत्र जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स टेक्सटाइल और फार्मास्यूटिकल में चीन का
विकल्प बन सकता है। क्योंकि कंपनियां आपूर्ति श्रृंखला को विविधता देना चाहती है। FDI
में वृद्धि हो सकती है वैश्विक कंपनियां भारत में निवेश बढ़ा सकती
हैं जैसे कि एप्पल और सैमसंग ने विनिर्माण इकाइयां स्थापित की है। व्यापार युद्ध
में भारत को घरेलू विनिर्माण और मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने का मौका मिल सकता
है।
चुनौतियां
भारत
के लिए कई चुनौतियां भी हैं सबसे पहले है अनिश्चितता का माहौल बनेगा। वैश्विक
बाजार में अस्थिरता से भारतीय अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हो सकती है। खासकर अगर
अमेरिका और चीन दोनों की ग्रोथ धीमी पड़ती है तो प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण पर असर
पड़ेगा। अगर अमेरिका और चीन के बीच तकनीकी संघर्ष और गहराता है तो वैश्विक इनोवेशन
और सप्लाई चैन पर भी असर पड़ेगा। जिसका प्रभाव भारत में स्पष्ट दिखाई पड़ सकता है।
चुनौती यह भी है कि भारत की इलेक्ट्रॉनिक्स और सोलर उद्योग जैसे क्षेत्र चीन से
आयातित कच्चे माल पर निर्भर है। जिससे लागत बढ़ सकती है। चीन अपने अतिरिक्त माल को
भारत और अन्य बाजारों में सस्ते दाम पर बेच सकता है। जिससे घरेलू उद्योगों को
प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ सकता है। वैश्विक मांग में कमी होने के कारण
व्यापार युद्ध से विश्व अर्थव्यवस्था मंदी की ओर जा सकती है। जिससे भारतीयों का
निर्यात प्रभावित हो सकता है। चिंता यह भी होगी भारत कई कच्चे माल और इलेक्ट्रॉनिक
घटकों के लिए चीन पर निर्भर है। टैरिफ और आपूर्ति श्रृंखला में रुकावट से लागत बढ़
सकती है। व्यापार युद्ध से वैश्विक मांग कम होने की आशंका है। जिससे भारत के
निर्यात प्रभावित हो सकते हैं। वैश्विक अनिश्चितता से रुपए पर दबाव पड़ सकता है।
वैश्विक
प्रभाव
वैश्विक
आपूर्ति श्रृंखला में बदलाव- कंपनियां अब चीन +1 रणनीति
अपनाने लगी है। जिससे वैश्विक व्यापार का नक्शा बदल रहा है। मुद्रा बाजार और
कमोडिटी कीमतों पर असर पड़ रहा है। व्यापार युद्ध से डॉलर की मांग कच्चे तेल की
कीमतें और सोने जैसी सेफ हेवन असेट्स की कीमतों में उतार-चढ़ाव आ रहा है। विश्व
व्यापार संगठन WTO की भूमिका पर सवाल उठ रहा है। अमेरिका चीन
टकराव ने बहुपक्षीय व्यापार समझौता की प्रभावशीलता पर भी प्रश्न खड़े कर रहे हैं।
चीन +1 रणनीति क्या है? कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियां चीन पर
निर्भरता कम करने के लिए भारत वियतनाम और मेक्सिको जैसे देशों में उत्पादन
स्थानांतरित कर रही है! भारत ने इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स
और ऑटोमोबाइल्स जैसे क्षेत्रों में उत्पादन लिंक प्रोत्साहन PLI योजनाएं शुरू की है। अमेरिका में चीनी वस्तुओं पर उच्च टैरिफ के कारण
भारतीय उत्पादों जैसे रसायन, स्टील, वस्त्र
की मांग बढ़ सकती है।
इसका
वैश्विक प्रभाव यह भी पड़ सकता है कि वैश्विक विकास दर में कमी (IMF के अनुसार 2019 में वैश्विक विकास दर 3% रही जो 2017 के 3.8% से कम
थी) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नेटवर्क और आपूर्ति श्रृंखला में बदलाव भी हो सकता है।
अमेरिका और चीन के बीच 5G , AI और सेमीकंडक्टर जैसे
क्षेत्रों में प्रदोष प्रभुत्व की लड़ाई से दुनिया दो ध्रुवों में बढ़ सकती है।
भारत जैसे देशों को दोनों पक्षों के साथ संतुलन बनाकर चलना फायदेमंद रहेगा।
अमेरिका भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे
देश गठ जोड़ कर सकते हैं। जो कि चीन के प्रभाव को संतुलित करने में सहायक होंगे।
यूरोप और दक्षिण पूर्व एशिया के देश व्यापार युद्ध के बीच अपने हितों की रक्षा के
लिए नए समझौते की ओर बढ़ रहे हैं। विकासशील देशों पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा।
अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के देश जो चीन के साथ व्यापार और ऋण पर निर्भर है।
आर्थिक मंदी और ऋण संकट का सामना उन्हें करना पड़ सकता है। कंपनियां चीन से बाहर
विनिर्माण इकाई स्थानांतरित कर रही हैं जैसे वियतनाम, भारत,
मेक्सिको। जिससे नई व्यापारिक गतिशीलता की गुंजाइश बढ़ गई है। टैरिफ
से वैश्विक स्तर पर कीमत बढ़ रही है। जिससे महंगाई बढ़ सकती है और आर्थिक विकास
धीमा भी हो सकता है। अमेरिका और चीन के बीच तकनीकी प्रतिबंधों (जैसे चिप्स और 5G)
से वैश्विक तकनीकी पारिस्थितिकी तंत्र दो खेमों में बंट सकता है।
व्यापार युद्ध में विश्व व्यापार संगठन यानी WTO जैसे
संस्थानों को कमजोर किया है और संरक्षणवाद को बढ़ावा दिया है। यानी वैश्विक सहयोग
पर भी इसका असर और स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है।
निष्कर्ष
भारत
के लिए यह व्यापार युद्ध अवसर और चुनौतियों का मिश्रण है। यदि भारत रणनीतिक सुधारो
जैसे बुनियादी ढांचा, व्यापार नीति को लागू करें तो
वह वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में मजबूती से बना रह सकता है। वैश्विक स्तर पर यह
युद्ध अनिश्चितता और आर्थिक पुनर्गठन का कारण बन रहा है। वहीं दूसरी ओर अमेरिका
चीन व्यापार युद्ध ने भारत के लिए निवेश और निर्यात के नए अवसर खोले हैं। लेकिन
साथ ही आपूर्ति श्रृंखला और भू राजनीतिक चुनौतियां भी पैदा की है। वैश्विक स्तर पर
यह संघर्ष आर्थिक बहु ध्रुवीयता को बढ़ावा दे रहा है। जहां भारत जैसे देशों की
भूमिका महत्वपूर्ण होगी। भारत की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि वह घरेलू
उद्योगों को मजबूत करने और वैश्विक गठ जोड़ों में सक्रिय भूमिका निभाने में कितना
सक्षम है। भारत अगर अपनी नीतियों को व्यावहारिक और लचिला बनाएं तो वह वैश्विक
बदलाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।