रविवार, 20 अप्रैल 2025

व्यवहारिक और लचीला बनकर हैरत में डाल सकता है भारत

 अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध का भारत और दुनिया के लिए क्या मतलब है?

संजीव खुदशाह

अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध मुख्य रूप से टैरिफ, व्यापार संतुलन और आर्थिक नीतियों को लेकर चल रहा है। यह 2018 से शुरू हुआ जब अमेरिका ने चीनी सामानों पर टैरिफ लगाए। इसके जवाब में चीन ने भी अमेरिकी उत्पादन पर जवाबी टैरिफ बढ़ाया । हाल के वर्षों में खासकर 2025 में यह तनाव और बढ़ा है।

अमेरिका ने चीनी आयात पर 104% तक टैरिफ लगाए जिसे बाद में बढ़ाकर 145% तक किया गया। चीन ने इस टैरिफ के जवाब में अमेरिकी माल पर 34% से 125% तक टैरिफ बढ़ाए। यानी दोनों देशों ने आपस में एक दूसरे की प्रोडक्ट पर टैरिफ में भारी भरकम वृद्धि कर दी और खुलेआम टैरिफ वार की घोषणा की जाने लगी। इससे दोनों देशों के शेयर बाजारों में गिरावट आ गई। अमेरिकी बाजारों में 3% तक की कमी देखी गई । जबकि चीनी बाजार में 3 से 4% तक की गिरावट दर्ज हुई। वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएं और अर्थव्यवस्था पर भी इसका असर पड़ने लगा। अमेरिका का दावा है कि वह व्यापार घाटे को कम करना चाहता है और घरेलू उद्योगों की रक्षा करना चाहता है। इसी कारण उसे टैरिफ बढ़ाना पड़ रहा है। लेकिन चीन इसे आर्थिक दबाव के रूप में देखता है और यह कहता है कि यह लड़ाई अंत तक चलेगी।

यह टैरिफ युद्ध अन्य देशों जैसे पाकिस्तान और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर बुरा असर कर सकता है। वैश्विक व्यापार विशेषज्ञ आर्थिक व्यवधानों की चेतावनी भी दे रहे हैं। वर्तमान में दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण बयान बाजी जारी है। चीन ने कहा है कि वह किसी भी तरह के व्यापार युद्ध के लिए तैयार है। जबकि अमेरिका अपनी अमेरिका फर्स्ट नीति पर कायम है। यह स्थिति वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए अनिश्चितता पैदा कर रही है।

भारत पर इसका प्रभाव अवसर

कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत के लिए यह एक अवसर है। चीन पर निर्भरता कम करने के लिए अमेरिका और यूरोपीय देश भारत, वियतनाम, बांग्लादेश जैसी देशों की ओर रुख कर सकते हैं। इससे भारत को निवेश और उत्पादन के नए मौके मिल सकते हैं। निर्यात में भी वृद्धि हो सकती है। कुछ अमेरिकी कंपनियां जो पहले चीन से सामान मंगवाती थी। वह भारत से मंगवाने पर विचार कर रही है। खासकर टेक्सटाइल, फार्मा और आईटी उत्पादों में। मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा मिल सकता है, मेक इन इंडिया को नई ऊर्जा मिल सकती है। क्योंकि विदेशी कंपनियां चीन से बाहर आकर भारत में निवेश करने लगेगी ऐसा अनुमान है। भारत की रणनीति आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा मिल सकता है। घरेलू उत्पाद को बढ़ावा देकर वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भागीदारी बढ़ाने का प्रयास किया जाना चाहिए। भारत ने कई बहुपक्षीय समझौते की शुरुआत कर दी है। खासतौर पर यूएई, ऑस्ट्रेलिया और यूके के साथ नए व्यापार समझौतों पर बातचित जारी है। यहां भारत कूटनीति का सहारा लेकर चीन के साथ सीमा विवाद और अमेरिका के साथ सुरक्षा साझेदारी के बीच संतुलन भी बनाने का प्रयास कर सकता है। भारत कुछ क्षेत्र जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स टेक्सटाइल और फार्मास्यूटिकल में चीन का विकल्प बन सकता है। क्योंकि कंपनियां आपूर्ति श्रृंखला को विविधता देना चाहती है। FDI में वृद्धि हो सकती है वैश्विक कंपनियां भारत में निवेश बढ़ा सकती हैं जैसे कि एप्पल और सैमसंग ने विनिर्माण इकाइयां स्थापित की है। व्यापार युद्ध में भारत को घरेलू विनिर्माण और मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने का मौका मिल सकता है।

चुनौतियां

भारत के लिए कई चुनौतियां भी हैं सबसे पहले है अनिश्चितता का माहौल बनेगा। वैश्विक बाजार में अस्थिरता से भारतीय अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हो सकती है। खासकर अगर अमेरिका और चीन दोनों की ग्रोथ धीमी पड़ती है तो प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण पर असर पड़ेगा। अगर अमेरिका और चीन के बीच तकनीकी संघर्ष और गहराता है तो वैश्विक इनोवेशन और सप्लाई चैन पर भी असर पड़ेगा। जिसका प्रभाव भारत में स्पष्ट दिखाई पड़ सकता है। चुनौती यह भी है कि भारत की इलेक्ट्रॉनिक्स और सोलर उद्योग जैसे क्षेत्र चीन से आयातित कच्चे माल पर निर्भर है। जिससे लागत बढ़ सकती है। चीन अपने अतिरिक्त माल को भारत और अन्य बाजारों में सस्ते दाम पर बेच सकता है। जिससे घरेलू उद्योगों को प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ सकता है। वैश्विक मांग में कमी होने के कारण व्यापार युद्ध से विश्व अर्थव्यवस्था मंदी की ओर जा सकती है। जिससे भारतीयों का निर्यात प्रभावित हो सकता है। चिंता यह भी होगी भारत कई कच्चे माल और इलेक्ट्रॉनिक घटकों के लिए चीन पर निर्भर है। टैरिफ और आपूर्ति श्रृंखला में रुकावट से लागत बढ़ सकती है। व्यापार युद्ध से वैश्विक मांग कम होने की आशंका है। जिससे भारत के निर्यात प्रभावित हो सकते हैं। वैश्विक अनिश्चितता से रुपए पर दबाव पड़ सकता है।

वैश्विक प्रभाव

वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में बदलाव- कंपनियां अब चीन +1 रणनीति अपनाने लगी है। जिससे वैश्विक व्यापार का नक्शा बदल रहा है। मुद्रा बाजार और कमोडिटी कीमतों पर असर पड़ रहा है। व्यापार युद्ध से डॉलर की मांग कच्चे तेल की कीमतें और सोने जैसी सेफ हेवन असेट्स की कीमतों में उतार-चढ़ाव आ रहा है। विश्व व्यापार संगठन WTO की भूमिका पर सवाल उठ रहा है। अमेरिका चीन टकराव ने बहुपक्षीय व्यापार समझौता की प्रभावशीलता पर भी प्रश्न खड़े कर रहे हैं।

चीन +1 रणनीति क्या है? कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियां चीन पर निर्भरता कम करने के लिए भारत वियतनाम और मेक्सिको जैसे देशों में उत्पादन स्थानांतरित कर रही है! भारत ने इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स और ऑटोमोबाइल्स जैसे क्षेत्रों में उत्पादन लिंक प्रोत्साहन PLI योजनाएं शुरू की है। अमेरिका में चीनी वस्तुओं पर उच्च टैरिफ के कारण भारतीय उत्पादों जैसे रसायन, स्टील, वस्त्र की मांग बढ़ सकती है।

इसका वैश्विक प्रभाव यह भी पड़ सकता है कि वैश्विक विकास दर में कमी (IMF के अनुसार 2019 में वैश्विक विकास दर 3% रही जो 2017 के 3.8% से कम थी) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नेटवर्क और आपूर्ति श्रृंखला में बदलाव भी हो सकता है। अमेरिका और चीन के बीच 5G , AI और सेमीकंडक्टर जैसे क्षेत्रों में प्रदोष प्रभुत्व की लड़ाई से दुनिया दो ध्रुवों में बढ़ सकती है। भारत जैसे देशों को दोनों पक्षों के साथ संतुलन बनाकर चलना फायदेमंद रहेगा। अमेरिका भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे देश गठ जोड़ कर सकते हैं। जो कि चीन के प्रभाव को संतुलित करने में सहायक होंगे। यूरोप और दक्षिण पूर्व एशिया के देश व्यापार युद्ध के बीच अपने हितों की रक्षा के लिए नए समझौते की ओर बढ़ रहे हैं। विकासशील देशों पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा। अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के देश जो चीन के साथ व्यापार और ऋण पर निर्भर है। आर्थिक मंदी और ऋण संकट का सामना उन्हें करना पड़ सकता है। कंपनियां चीन से बाहर विनिर्माण इकाई स्थानांतरित कर रही हैं जैसे वियतनाम, भारत, मेक्सिको। जिससे नई व्यापारिक गतिशीलता की गुंजाइश बढ़ गई है। टैरिफ से वैश्विक स्तर पर कीमत बढ़ रही है। जिससे महंगाई बढ़ सकती है और आर्थिक विकास धीमा भी हो सकता है। अमेरिका और चीन के बीच तकनीकी प्रतिबंधों (जैसे चिप्स और 5G) से वैश्विक तकनीकी पारिस्थितिकी तंत्र दो खेमों में बंट सकता है। व्यापार युद्ध में विश्व व्यापार संगठन यानी WTO जैसे संस्थानों को कमजोर किया है और संरक्षणवाद को बढ़ावा दिया है। यानी वैश्विक सहयोग पर भी इसका असर और स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है।

निष्कर्ष

भारत के लिए यह व्यापार युद्ध अवसर और चुनौतियों का मिश्रण है। यदि भारत रणनीतिक सुधारो जैसे बुनियादी ढांचा, व्यापार नीति को लागू करें तो वह वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में मजबूती से बना रह सकता है। वैश्विक स्तर पर यह युद्ध अनिश्चितता और आर्थिक पुनर्गठन का कारण बन रहा है। वहीं दूसरी ओर अमेरिका चीन व्यापार युद्ध ने भारत के लिए निवेश और निर्यात के नए अवसर खोले हैं। लेकिन साथ ही आपूर्ति श्रृंखला और भू राजनीतिक चुनौतियां भी पैदा की है। वैश्विक स्तर पर यह संघर्ष आर्थिक बहु ध्रुवीयता को बढ़ावा दे रहा है। जहां भारत जैसे देशों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। भारत की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि वह घरेलू उद्योगों को मजबूत करने और वैश्विक गठ जोड़ों में सक्रिय भूमिका निभाने में कितना सक्षम है। भारत अगर अपनी नीतियों को व्यावहारिक और लचिला बनाएं तो वह वैश्विक बदलाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

Publish in Rastriya Sahara 19/4/2025

रविवार, 13 अप्रैल 2025

डॉ अंबेडकर आज और कल - संजीव खुदशाह

 अंबेडकर जयंती 14 अप्रैल पर विशेष

डॉ अंबेडकर आज और कल

संजीव खुदशाह

14 अप्रैल 1891 को डॉक्टर अंबेडकर का जन्म हुआ, यानी डॉ आंबेडकर की 132 वी जयंती है। वैसे तो उनका जन्म मध्यप्रदेश के महू सैनिक छावनी में हुआ था। लेकिन उनका परिवार अंबावडे गांव जो कि वर्तमान में महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में है, उससे संबंधित था। डॉक्टर अंबेडकर बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे और साहू जी महाराज के फेलोशिप की बदौलत उन्होंने विदेश से भी जाकर शिक्षा अर्जित की थी। जीवन में उन्हे कई बार जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा।

एक समय ऐसा था जब भारत में दलितों को सार्वजनिक स्‍थानों से पानी पीने तक का अधिकार नहीं था। वे सार्वजनिक तालाबों, कुओं में पानी नहीं पी सकते थे। डॉक्टर अंबेडकर ने 20 मार्च 1927 को पानी पीने के अधिकार के लिए आंदोलन किया जिसे सामाजिक सशक्तिकरण दिवस के रूप में मनाया जाता है।

दरअसल महाराष्‍ट्र कोलाबा जिले के महाड़ में स्थित चवदार तालाब में ईसाईमुसलमानपारसीपशुयहाँ तक कि कुत्ते भी तालाब के पानी का उपयोग करते थे लेकिन अछूतों को यहाँ पानी छूने की भी इजाजत नहीं थी। डॉं अंबेडकर ने अपने साथियों के साथ उस तालाब में जाकर एक चुल्‍लु पानी पिया । चारों ओर सवर्ण हिन्दुओं का विरोध हाने लगा डॉं अंबेडकर के काफिले के उपर लाठी डंडे से हमले किया गये लोग जख्‍मी हुऐ । बाद में उस तलाब को ब्राम्‍हणों द्वारा तीन दिनों तक दूध गौमूत्र गोबर मंत्रोपचार यज्ञ हवन से प्‍युरिफाई किया गया।

आजादी के पहले महात्मा गांधी जब एक ओर नमक (नमक सत्‍याग्रह 1930) के लिए लड़ाई कर रहे थे वहीं दूसरी ओर डॉक्टर अंबेडकर वंचित जातियों के लिए पीने के पानी की लड़ाई (1927) लड़ रहे थे। एक ओर जब छोटी-छोटी रियासतें ऊंची जाति के लोग अपनी हुकूमत बचाने के लिए अंग्रेजों से संघर्ष कर रहे थे। तो डॉक्टर अंबेडकर इन रियासतों ऊंची जातियों से पिछड़ी जातियों के जानवर से बदतर बर्तावशोषण से मुक्ति की बात कर रहे थे।  महात्मा फुले के बाद वे ही ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने पूरे विश्व पटल में जातिगत शोषण का मुद्दा बड़ी ही मजबूती के साथ पेश किया। दरअसल दलित और पिछड़ी वंचित जातियों का मुद्दा विश्व पटल पर तब गुंजा जब उन्होंने गोलमेज सम्मेलन के दौरान जातिगतआर्थिक और राजनीतिक शोषण होने की बात रखी। बाद में इन मुद्दों को साइमन कमीशन में जगह मिली। पहली बार दबे कुचले वंचित जातियों को अधिकार देने की बात हुई।

डॉक्टर अंबेडकर ने भारत के हर वर्ग के लिए काम किया। यदि भारत का संविधान देखें तो उसमें गैर बराबरी के लिए कोई स्थान नहीं है। हर वह व्यक्ति चाहे वह किसी भी जाति से ताल्लुक रखता हो अगर वंचित है, पीड़ित है, तो संविधान उसे न्याय और ऊपर उठने में मदद करता है। सदियों से पीड़ित दलित, आदिवासी, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक, भारत की आधी आबादी महिला वर्ग के उत्थान की खातिर उन्होंने संविधान में क्लॉज बनाएं। संविधान सभा के 248 सदस्यों ने प्रारूप में प्रस्‍तुत जिन अनुच्छेदों को सर्वसम्मति से पारित किया, वही आज भारतीय संविधान का हिस्सा है। दरअसल भारत का संविधान यह बताता है कि हमारे पूर्वज जो संविधान सभा के सदस्य थे, पूरे भारत से चुनकर आए थे, वह किस प्रकार के भारत का कल्पना कर रहे थे। संविधान उसी कल्पना का मूर्त रूप है।

डॉक्टर अंबेडकर संविधान सभा के अपने अंतिम भाषण में कहते हैं कि संविधान कैसा लिखा गया हैइससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि संविधान को किस तरीके से लागू किया जा रहा है। क्या हमारी मशीनरी, हमारा प्रशासन संविधान की मंशा अनुसार भेदभाव रहित लोकतांत्रिक व्यवस्था दे पा रही हैयह एक प्रश्न है जिसे डॉक्टर अंबेडकर के इस मंशा के बरअक्स देखा जा सकता है।

 क्या था डॉक्टर अंबेडकर का ड्रीम प्रोजेक्ट?

समतामूलक भेदभाव रहित समाज की स्थापना के लिए बाबा साहब ने कई सपने देखे थे। इनमें से दो स्‍वप्‍न महत्‍वपूर्ण थे जिन्हें उनका ड्रीम प्रोजेक्ट कहा जाता है।

पहला है जाति का उन्मूलन, दूसरा है सबको प्रतिनिधित्व।

जाति का उन्मूलन यानी सभी जाति बराबरबिना भेदभाव के जाति विहीन समाज की स्थापना। वे इस जाति प्रथा को खत्म करना चाहते थे। बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का कहना था कि हमारे देश की तरक्की मैं सबसे बड़ा रोड़ा हमारी जाति व्यवस्था हैऊंच नीच है।

आज पूरे देश की जिम्मेदारी है कि वह डॉ आंबेडकर के इस ड्रीम प्रोजेक्ट जाति के उन्मूलन के लिए कदम बढ़ाए और उनके इस सपने को पूरा करें। तभी हमारा देश संगठित और विकसित हो पाएगा।

भारत के लोकतंत्र के चार स्तंभ है न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका और मीडिया। क्या इन स्तंभों में डायवर्सिटी है ? क्या सभी वर्ग के लोगों का प्रतिनिधित्व इन स्तंभों में हैइसका जवाब है लोकतंत्र के इन स्तंभों में कुछ ही जातियों का दबदबा है। इस कारण तमाम वंचित जातियोंमहिलाओंधार्मिक अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाता है। उनकी बातेंउनकी परेशानियां वहां तक नहीं पहुंच पाती है।

बाबा साहब कहते हैं कि सिर्फ सरकारी नौकरी में प्रतिनिधित्व देने से काम नहीं बनेगा। इनको लोकतंत्र के चारों स्तंभों में बराबर का प्रतिनिधित्व देना पड़ेगा। तब कहीं जाकर देश के सबसे अंतिम पंक्ति के व्यक्तियों का भला हो सकेगा और सबसे अंतिम व्यक्ति को यह महसूस होगा कि वह इस देश का हिस्सा है। देश उसके लिए सोचता है। आज कितने बेघर, भूमिहीन, बेरोजगार , भेदभाव से पीड़ित लोग हैं उन तक शासन-प्रशासन से मदद की जरूरत है।

भारत के फिर से गुलाम होने का भय

डॉ अंबेडकर देश के गद्दारों से भार के फिर से गुलाम होने की आशंका व्‍यक्त करते है। वे संविधान सभा के समापन भाषण में कहते है कि यह बात नहीं है कि भारत कभी एक स्वतंत्र देश नहीं था। विचार बिंदु यह है कि जो स्वतंत्रता उसे उपलब्ध थीउसे उसने एक बार खो दिया था। क्या वह उसे दूसरी बार खो देगायही विचार है जो मुझे भविष्य को लेकर बहुत चिंतित कर देता है। यह तथ्य मुझे और भी व्यथित करता है कि न केवल भारत ने पहले एक बार स्वतंत्रता खोई हैबल्कि अपने ही कुछ लोगों के विश्वासघात के कारण ऐसा हुआ है।

सिंध पर हुए मोहम्मद-बिन-कासिम के हमले से राजा दाहिर के सैन्य अधिकारियों ने मुहम्मद-बिन-कासिम के दलालों से रिश्वत लेकर अपने राजा के पक्ष में लड़ने से इनकार कर दिया था। वह जयचंद ही थाजिसने भारत पर हमला करने एवं पृथ्वीराज से लड़ने के लिए मुहम्मद गोरी को आमंत्रित किया था और उसे अपनी व सोलंकी राजाओं को मदद का आश्वासन दिया था। जब शिवाजी हिंदुओं की मुक्ति के लिए लड़ रहे थेतब कोई मराठा सरदार और राजपूत राजा मुगल शहंशाह की ओर से लड़ रहे थे।

जब ब्रिटिश सिख शासकों को समाप्त करने की कोशिश कर रहे थे तो उनका मुख्य सेनापति गुलाबसिंह चुप बैठा रहा और उसने सिख राज्य को बचाने में उनकी सहायता नहीं की। सन् 1857 में जब भारत के एक बड़े भाग में ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वातंत्र्य युद्ध की घोषणा की गई थी तब सिख इन घटनाओं को मूक दर्शकों की तरह खड़े देखते रहे।

क्या इतिहास स्वयं को दोहराएगायह वह विचार हैजो मुझे चिंता से भर देता है। इस तथ्य का एहसास होने के बाद यह चिंता और भी गहरी हो जाती है कि जाति व धर्म के रूप में हमारे पुराने शत्रुओं के अतिरिक्त हमारे यहां विभिन्न और विरोधी विचारधाराओं वाले राजनीतिक दल होंगे। क्या भारतीय देश को अपने मताग्रहों से ऊपर रखेंगे या उन्हें देश से ऊपर समझेंगेमैं नहीं जानता। परंतु यह तय है कि यदि पार्टियां अपने मताग्रहों को देश से ऊपर रखेंगे तो हमारी स्वतंत्रता संकट में पड़ जाएगी और संभवत: वह हमेशा के लिए खो जाए। हम सबको दृढ़ संकल्प के साथ इस संभावना से बचना है। हमें अपने खून की आखिरी बूंद तक अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करनी है।

अखण्‍ड भारत के लिए उनके विचार

डॉक्टर अंबेडकर कहते है की आज का विशाल अखण्‍ड भारत धर्मनिरपेक्षता समानता की बुनियाद पर खड़ा हैइसकी अखण्‍डता को बचाये रखने के लिए जरूरी है की इसकी बुनियाद को मजबूत रखा जाय। वे राजनीतिक लोकतंत्र के लिए सामाजिक लोकतंत्र महत्‍वपूर्ण और जरूरी मानते थे। भारत में जिस प्रकार गैरबराबरी है उससे लगता है कि समाजिक लोकतंत्र आने में अभी और समय की जरूरत है।

संविधान सभा के समापन भाषण में वे कहते है। ‘’तीसरी चीज जो हमें करनी चाहिएवह है कि मात्र राजनीतिक प्रजातंत्र पर संतोष न करना। हमें हमारे राजनीतिक प्रजातंत्र को एक सामाजिक प्रजातंत्र भी बनाना चाहिए। जब तक उसे सामाजिक प्रजातंत्र का आधार न मिलेराजनीतिक प्रजातंत्र चल नहीं सकता। सामाजिक प्रजातंत्र का अर्थ क्या हैवह एक ऐसी जीवन-पद्धति है जो स्वतंत्रतासमानता और बंधुत्व को जीवन के सिद्धांतों के रूप में स्वीकार करती है।"

उनके अनुसार धर्मनिरपेक्षता का मतलब यह है कि राजनीति से धर्म पूरी तरह अलग होना चाहिए। राजनीति और धर्म के घाल मेल से भारत की अखण्‍डता को खतरा हो सकता है। वे भारत में नायक वाद को भी एक खतरा बताते है संविधान सभा के समापन भाषण में कहते है कि दूसरी चीज जो हमें करनी चाहिएवह है जॉन स्टुअर्ट मिल की उस चेतावनी को ध्यान में रखनाजो उन्होंने उन लोगों को दी हैजिन्हें प्रजातंत्र को बनाए रखने में दिलचस्पी हैअर्थात् ''अपनी स्वतंत्रता को एक महानायक के चरणों में भी समर्पित न करें या उस पर विश्वास करके उसे इतनी शक्तियां प्रदान न कर दें कि वह संस्थाओं को नष्ट करने में समर्थ हो जाए।''

उन महान व्यक्तियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने में कुछ गलत नहीं हैजिन्होंने जीवनर्पयत देश की सेवा की हो। परंतु कृतज्ञता की भी कुछ सीमाएं हैं। जैसा कि आयरिश देशभक्त डेनियल ओ कॉमेल ने खूब कहा है, ''कोई पुरूष अपने सम्मान की कीमत पर कृतज्ञ नहीं हो सकता, कोई महिला अपने सतीत्व की कीमत पर कृतज्ञ नहीं हो सकती और कोई राष्ट्र अपनी स्वतंत्रता की कीमत पर कृतज्ञ नहीं हो सकता।'' यह सावधानी किसी अन्य देश के मुकाबले भारत के मामले में अधिक आवश्यक हैक्योंकि भारत में भक्ति या नायक-पूजा उसकी राजनीति में जो भूमिका अदा करती हैउस भूमिका के परिणाम के मामले में दुनिया का कोई देश भारत की बराबरी नहीं कर सकता। धर्म के क्षेत्र में भक्ति आत्मा की मुक्ति का मार्ग हो सकता हैपरंतु राजनीति में भक्ति या नायक पूजा पतन और अंतत: तानाशाही का सीधा रास्ता है।‘’

जाहिर  है डॉं अंबेडकर की चिंता केवल समुदाय विशेष के लिए नही है वे देश को प्रबुध्‍द एवं अखण्‍ड देखना चाहते है। उनके ये विचार कल की तरह आज भी उतने की प्रासंगिक है। आशा ही नही पूर्ण विश्‍वास है कि देश उनके चिंतन से सीख लेता रहेगा और तरक्‍की करता रहेगा।


Publish on Navbharat  13 April 2025

 

गुरुवार, 29 अगस्त 2024

Reservation within reservation right or wrong?

आरक्षण भीतर आरक्षण सही या गलत?

संजीव खुदशाह

१ अगस्त २०२४ को आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के सात सदस्‍यीय पीठ के द्वारा देविन्‍दर सिंह विरूध पंजाब के बारे में फैसला आने के बाद अगड़ा दलित और पिछड़ा दलित के बीच द्वंद छि‍ड़ गया है। दोनो ओर से अपने अपने तर्क दिये जा रहे है। आज यह बहस राष्‍ट्रीय पटल पर हो रही है। अगड़े दलित उनको माना जाता है जो आजादी के बाद से लगातार नौकरी पेशा में आ रहे हैं और इस जाति के काफी मात्रा में लोग आरक्षण का लाभ लेकर उच्च पदों तक पहुंचे हैं समृद्ध साली हुए हैं। जैसे जाटव, महार, अहिरवार, सतनामी आदि आदि। वहीं दूसरी ओर पिछड़े दलित उन्हें माना जाता है जिन्हें परिस्थितिवश या उनके अति पिछड़ापन होने के कारण आरक्षण का लाभ उस तरह से नहीं मिल पाया जिस तरह से अगड़े दलितों को मिला है। जैसे वाल्मीकि, लालबेगी, मेहतर, डोमार, बंसोर, चुहड़ा, घसिया, देवार आदि आदि। इनमें प्रतिनिधित्व का बटवारा बेहद असमान है। सफाई कामगारों में भी लाभ लेने में वाल्मीकि जाति सबसे आगे है।

यहां यह बताना जरूरी है कि याचिका कर्ता डॉक्टर ओपी शुक्ला जो की दलित समाज से आते हैं, उनका कहना है कि आजादी के बाद से सफाई कामगार समाज का शोषण हुआ है। उनका प्रतिनिधित्व कहां गया ? आखिर किसने उनका प्रतिनिधित्व खाया है? यह बता दें। वह कहते हैं कि मैंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका इसीलिए डाली ताकि संविधान के अनुसार जो सबसे अंतिम व्यक्ति है। उसे इसका फायदा मिल सके। बहुत सारी ऐसी जातियां आज भी हैं जिन्हें सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। इस फैसले से दक्षिण भारत में खुशी का माहौल है तो उत्तर भारत में द्वंद छि‍ड़ा है।

अगड़े दलित कहते हैं कि यह फैसला विधि सम्‍मत नहीं है। यह फूट डालो राज करो जैसा है। इस फैसले से दलितों में दो फाड़ हो जायेगा, वैमनस्य बढ़ेगा। वे कहते है कि उन्होंने अपना गंदा पुश्तैनी पेशा बहुत पहले छोड़ दिया था। लेकिन पिछड़े दलित जाति के लोगों ने अपना गंदा पुश्तैनी पेशा नहीं छोड़ा। जबकि डॉ अंबेडकर ने १९३० में यह आह्वान किया था कि अछूत अपना गंदा पेशा छोड़ दें। पिछड़े दलित जातियों में बहुत बड़ी संख्या सफाई कामगार जातियों की हैं। यह सत्य है कि इन्होंने अपना पुश्‍तैनी गंदा पेशा नहीं छोड़ा। इसके कारण इनमें उत्थान नहीं हो पाया। यह थोड़ा बहुत जागरूक हुई तो भी इन्होंने उस गंदे पेशे में अधिक वेतन और सुविधा की मांग करने लगे। कई जगह ऐसा भी देखने मिला की वे इन पेशों में 100% आरक्षण की मांग करने लगे। ऐसे भी उदाहरण हैं जबकि इन पिछड़े दलित जातियों के कुछ लोगों ने अपने गंदे पेशे को छोड़कर अच्छे पेशे को अपनाया और वह आगे तरक्की कर गये।  

माननीय सु‍प्रीम कोर्ट की सराहनीय पहल

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति जनजाति में क्रीमीलेयर की बात की थी जिसे माननीय प्रधानमंत्री ने लागू नहीं होगा कहकर इस पर विराम लगा दिया, जो सही भी था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के दूसरे निर्देश जिसमें यह कहा गया कि पीछे रह गई जातियों में अलग से आरक्षण का बंटवारा भी किया जाएगा। यह सुप्रीम कोर्ट का एक सराहनीय पहल है। आखिर अतिपिछड़े दलित और आदिवासी को अलग से आरक्षण मिलेगा तो इससे किसे आपत्ति होगी? 

यह प्रश्न खड़ा होता है कि आजादी के 75 साल बाद भी दलित आदिवासी इतने पिछड़े क्यों हैं? आखिर इनमें विकास और उत्थान क्यों नहीं हो रहा है आखिर क्या कमी रह गई। गंदे पेशे से छुटकारा देने के लिए प्रयास किया जाना चाहिए था। क्योंकि एक मानव के द्वारा अपमानजनक पेशे का किया जाना पूरे भारतवर्ष के लिए शर्म की बात है और संविधान के भी विरुद्ध है। चाहिए था कि जल्द से जल्द इन पेशे में लगे लोगों को हटाया जाए और मानव की जगह मशीन का उपयोग किया जाए । साथ-साथ इनका पुनर्वास किया जाना चाहिए।

माननीय सुप्रीम कोर्ट से यह अपेक्षा थी कि अजा अजजा में जो आरक्षण दिया जाता है वह आरक्षण बहुत मात्रा में नॉट फाउंड सूटेबल  कहकर जनरल पोस्ट भर दिए जाते हैं। कई कई साल तक बैकलॉग की भर्तियां नहीं निकाली जाती है। निर्देश दिया जाना चाहिए था कि बैकलॉग की भर्तियां तुरंत करें और नॉट फाउंड सूटेबल को सामान्‍य में समायोजित न करके अगली भर्ती में उसकी वैकेंसी फिर से उसी केटेगरी में निकाली जाए।

जाहिर है पिछड़े दलितों आदिवासियों को मुख्‍य धारा में लाने के लिए हमें बहुत सारे कदम उठाने पड़ेगें सिर्फ आरक्षण से काम नहीं चलेगा तभी हमारे देश में कोई पीछे नहीं रह जायेगा। न ही किसी को अपने विकास के लिए गुहार लगाने की जरूरत पड़ेगी। सुप्रीम कोर्ट के इस पहल का स्‍वागत किया जाना चाहिए। 





गुरुवार, 4 जुलाई 2024

My Shri Lanka Tour - Sanjeev Khudshah

 श्रीलंका के यादगार लम्‍हे

संजीव खुदशाह

बुद्ध जयंती के अवसर पर मुझे श्रीलंका को काफी करीब से जानने समझने का मौका मिला। श्रीलंका में कैसी जीवन चर्या है? लोग वहां कैसे रहते हैं? कैसा व्यवहार करते हैं? और बुद्ध धर्म का प्रचार वहां पर किस तरह से किया गया और वे बुद्ध धर्म को किस प्रकार से मानते हैं? ये सब जानना मेरे लिए किसी कौतूहल से कम न था ।

Loin Rock shrilanka

श्रीलंका पर बात शुरू करने से पहले मैं श्रीलंका के बारे में कुछ आधारभूत तथ्‍यों को बताना चाहूंगा। श्रीलंका एक पुरातन देश है इसका प्राचीन नाम सिंहल द्वि‍प है कुछ बरस पहले इसे सिलोन के आधिकारिक नाम से पुकारा जाता था। बाद में 1972 से इसे श्रीलंका अधिकारिक नाम से जाना जाने लगा। श्रीलंका की आबादी 2 करोड़ 21 लाख है यहां पर 80% लोग बौद्ध धर्म का पालन करते हैं। कुछ तमिल हिंदू, मुसलमान और ईसाई भी हैं। अनुराधापुरम श्रीलंका की प्राचीन राजधानी है। उसके बाद कैंडी कुछ समय तक राजधानी रही है। वर्तमान में कोलंबो श्रीलंका की राजधानी है। ऐतिहासिक रूप से अनुराधापुरम का बड़ा महत्व है भारत से लाया गया बोधी वृक्ष यहां मौजूद है। यहां पर भगवान बुद्ध की अस्थियां भी रखी गई है। श्रीलंका की ये खास बात यह है कि महिला पुरुष के अनुपात में महिलाएं ज्यादा है यानी 100 महिला में 92.12 पुरुष।


आकृति 1 Mahabodhi Tree shrilanka
श्रीलंका की प्राचीन नगरी अनुराधापुरम पर्यटन के लिहाज से महत्‍वपूर्ण है जिसमें महाबोधि वृक्ष, थुपा स्तूप, अभय गिरी स्तूप का दर्शन किया जा सकता है । यहां पर यह जानकर आश्चर्य हुआ कि गया में स्थित महाबोधि वृक्ष से भी पुराना यहां का महाबोधि वृक्ष है। बताया जाता है कि सम्राट अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र एवं पुत्री संघमित्रा के माध्यम से गया के महाबोधि वृक्ष की शाखा यहां भेजी थी। ईशा से लगभग 300 वर्ष पूर्व। जो कि आज भी यहां पर मौजूद है। क्योंकि श्रीलंका में बौद्ध धर्म को मानने वाले बड़ी संख्या में है। इसीलिए इस वृक्ष को बहुत ही संभालकर रखा गया है। चारों ओर लोहे और ईंट के बाड़े से बोधि वृक्ष को घेरा गया है, एक सोने के स्तंभ से वृक्ष की शाखा को स्पर्श किया गया है। लोग इस स्तंभ को छूकर बोधि वृक्ष को स्पर्श करने का एहसास करते हैं।


आकृति 1 Mahabodhi Tree shrilanka

आकृति 2 Thuparam Stup

आकृति 2 Thuparam Stup

थूपाराम स्तूप- सम्राट अशोक के पुत्र महेंद्र के यहां आने पर 247 ईसा पूर्व श्रीलंका के राजा देवनामपिया तिस्सा के द्वारा बनाया गया। यह श्रीलंका में सबसे पुराना स्तूप है। इस स्तूप में भगवान बुद्ध के दाहिने कंधे  की अस्थि रखा गया है। इसलिए इसका महत्‍व ज्‍यादा है।

आकृति 3 Abhayagiri stup shrilanka

आकृति 3 Abhayagiri stup shrilanka

अभय गिरी स्तूप- श्रीलंका के अनुराधापुरम में अभय गिरी स्तूप की स्थापना राजा वलागम्बा ने अपने शासन के दौरान 89 से 77 ईसा पूर्व में की थी। महावम्श के अनुसार अभय गिरी विहार नाम की उत्पत्ति राजा वट्टागमनी अभय और जैन भिक्षु गिरी के नाम से हुई है जो पहले मठ में रहते थे।

आकृति 4 Dambul Cave

आकृति 4 Dambul Cave

अलुविहारे रॉक गुफा मंदिर - मटाले इसे दांबुला गुफा मंदिर भी कहते है।  यहां पर भारत में स्थित अजंता एंलोरा की गुफाओं की तरह पहाड़ पर गुफाओं की श्रृंखला है। जो की दर्शनिय है । खास बात यह है कि गुफा बनने के बाद से इसका रख रखाव किया जा रहा है। इसलिए इसकी पेंटिंग, बनावट, कलाकृति अब भी नई सी लगती है। जैसे अजंता ऐलोरा को भारत में एक समय भुला दिया गया बाद में फिर खोजा गया। यहा श्रीलंका में ऐसा नही है। इन गुफाओं में बौध्‍द भीक्षु अब भी रहते है और ध्‍यान साधना करते है।

आकृति 5 Golden bhudha temple

आकृति 5 Golden bhudha temple

गोल्डन बुद्धा टेंपल - श्रीलंका की इन प्राचीन गुफाओं के पास ही गोल्‍डन टेंपल है जिस पर बुद्ध की विशाल प्रतिमा है। यह टेम्‍पल ध्‍यान एवं पूजा का केन्‍द्र तो है ही साथ में इसमें ऐतिहासिक महत्‍व की चीजे रखी गई । यहां एक म्‍युजियम भी है। जो की देखने लायक है।

आकृति 6 Dant Vihar

आकृति 6 Dant Vihar

बुद्धा दंत विहार - पवित्र दंत अवशेष का मंदिर, श्रीलंका के शहर कैंडी में स्थित एक बौद्ध मंदिर है। कैंडी की पूर्व राजशाही के शाही महल परिसर में स्थित इस मंदिर में महात्मा बुद्ध के दांत रखे गये हैं। प्राचीन काल से ही इन पवित्र अवशेषों ने स्थानीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, क्योंकि यह माना जाता है कि यह अवशेष जिसके भी पास होते हैं वही इस देश पर शासन करता है। कैंडी श्रीलंका के राजाओं की अंतिम राजधानी थी और मुख्य रूप से इस मंदिर की वजह से यूनेस्को द्वारा इसे एक विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया है।

श्रीलंका में चाय बगान का महत्‍व- श्रीलंका में चाय का बगान के पीछे ऐतिहासिक कहानी है। अंग्रेजो ने जब 1815 में श्रीलंका पर कब्‍जा किया तो पहले पहल चाय के बगान बनाये और इस हेतु उन्‍होने मजदूर तमिल नाडु से मगांये । इस तरह यहां पर चाय की खेती शुरू हुई। दुनिया के बड़े ब्रांड की चाय यहां तैयार होती है।

श्रीलंका इन दिनों आर्थिक विघटन से निकलने का प्रयास कर रहा है। इस कारण भारतीय ₹100 श्रीलंका में जाकर 340 श्रीलंका रुपए हो जाते हैं। श्रीलंका का अपना रेल सिस्‍टम है । लेकिन ये सब अब भी पुराने जमाने जैसा है।  तकनीक के मामले में हमारा देश भारत कही आगे है। बसे और दूसरे वाहन भारत से ही इंपोर्ट किए जाते हैं। पेट्रोल पर भी श्रीलंका हमारे भारत पर निर्भर है। जापान और चीन भी श्रीलंका के विकास के लिए सहयोग कर रहे है। भारत में जिस प्रकार श्रीलंका को राम रावण युद्ध या रावण के निवास स्थान के रूप में देखा जाता है। यहां के निवासियों से बातचीत के दौरान ज्ञात हुआ कि श्रीलंका के निवासी राम और रावण से बिल्कुल अनभिज्ञ है। कुछ वर्ष पूर्व श्रीलंका में माता सीता का एक मंदिर बनाया गया है। श्रीलंका में एक और चीज बड़ी प्रसिद्ध है वह है आदम का पैर। कई लोग इसे बुद्ध के पैरों का चिन्ह भी कहते हैं। यह भी बुद्ध विहार का हिस्सा है।

श्रीलंका में बहुत सारी ऐसी चीजे हैं जो की हमेशा याद की जायेगी। जैसे यहां के लोगों की शालीनता। वह शांत रहते है आपस में भी बहुत कम बातचीत करते हैं और श्रीलंका के सड़क, बाजार बिल्कुल स्वच्छ है। क्योंकि यहां के लोग कचरा सड़कों पर नहीं फेंकते । लोग डस्‍टबीन का प्रयोग करते है।  बौद्ध विहारों में साफ सफाई बौद्ध भिक्षु ही करते हुए देखे जाते हैं। श्रीलंका के निवासियों के बीच बौध्‍द भिक्षुओं का बहुत सम्मान है। कुछ बड़े शहर जैसे कैंडी और कोलंबो को छोड़ दें तो श्रीलंका में ट्रैफिक सिग्नल नहीं है। लेकिन लोगों में ट्रैफिक सेंस इतना ज्यादा है कि सड़कों पर हार्न का प्रयोग नहीं करना पड़ता । ज़ेबरा क्रॉसिंग में यदि एक व्यक्ति भी गुजर रहा हो, तो सारे वाहन रुक जाते हैं। यह अनुशासन भारत में बिरले ही देखने को मिलता है। भूमध्य रेखा


में होने के कारण श्रीलंका में मानसून बहुत जल्दी आ जाता है और खूब बारिश होती है। इस कारण पूरे श्रीलंका में हरियाली छाई हुई है। यहां के लोगों का नैन नक्श दक्षिण भारतीयों की तरह है। लेकिन यहां की मुख्य भाषा सिंहली है। भारत यथा संभव श्रीलंका को मदद करता है। संस्‍कृति और भूगोल के हिसाब से श्रीलंका भारत का छोटा भाई की तरह है। ऐतिहासिक रूप से श्रीलंका और हमारे देश के बीच पुराने संबंध है। आशा है समय के साथ साथ यह संबंध और प्रगाढ़ होगा।

Publish On Navbharat 16/06/2024

शुक्रवार, 12 जनवरी 2024

Cricket match in the stadium

 स्‍टेडियम में जाकर क्रिकेट मैच

संजीव खुदशाह

कल पहली बार  स्टेडियम में अंतरराष्ट्रीय राष्ट्रीय क्रिकेट देखने का मौका मिला।

यकीन मानिए तो क्रिकेट से मेरा विश्वास उठ चुका है। तब जब मैच फिक्सिंग के मामले में क्रिकेट की थू थू हुई थी। एक समय क्रिकेट को लेकर दीवानगी मेरे अंदर थी। लेकिन अब वह बात नहीं है टीवी पर भी क्रिकेट मैं बहुत कम देखता हूं। कोई बहुत खास मैच होता है तभी टीवी के सामने बैठता हूं।


कल मुझे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच जो की रायपुर के शहीद वीर नारायण अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम में खेला गया देखने का मौका मिला जो की मित्रों द्वारा प्रायोजित था।

स्टेडियम की ओर जाती हुई भीड़ देखकर अंदाजा लगाया जा सकता था कि क्रिकेट को लेकर कितनी दीवानगी है। बच्चे, बूढ़े, औरत, नौजवान, लड़कियां सब स्टेडियम की ओर जा रहे थे। गेट पर ही पानी के बोतल, सिक्के, खाने की वस्तुएं रखवा ली गई। भीतर जाने के बाद पता चला कि₹20 का पानी की बोतल ₹100 में और खाने के जो समान है। उनका रेट कितना ज्यादा की मत पूछिए।

जैसे ही मैं स्टेडियम के भीतर पहुंचा आवक रह गया। स्टेडियम में खचाखच भरी भीड़ और दूधिया रोशनी से नहाती खिलाड़ियों के मैदान। बेहद आकर्षक लग रहे थे। हम लोग जब अपनी सीट पर बैठकर क्रिकेट का आनंद लेने की कोशिश करने लगे तो महसूस हुआ की इससे ज्यादा अच्छा तो टीवी में लगता है। ऐसा लगता है कि हम खिलाड़ियों के साथ ही घूम रहे हैं या मैदान के बीच में है।

लेकिन क्रिकेट के मैदान में बात दूसरी हो जाती है। कौन बैटिंग कर रहा है? कौन बॉलिंग कर रहा है? आप समझ नहीं पाते. यह जानने के लिए डिस्प्ले बोर्ड जो मैदान में 1 या 2  होते हैं उनका सहारा लेना पड़ता है। बच्चे बूढ़े सब अपने गालों में तिरंगा झंडा बनाए हुए। भारतीय टीम की नीली शर्ट जो मैच के दौरान, एक-दो घंटे के लिए ही पहननी थी लोगों ने 150, 300 में खरीदा था। ऐसा नहीं लग रहा था की यह कार्यक्रम किसी विकासशील देश में हो रहा है। लोगों की खरीदने की ताकत पहले से कहीं अधिक है। टिकट की मूल या 3500 से 25000 तक थे।

क्रिकेट का मैच दरअसल एक इवेंट हो गया है। ओवर खत्म होने के बाद आकर्षक म्यूजिक बजाया जाता है। चौका- छक्का या विकेट गिरने पर भी चीयर गर्ल्स नाचती हैं या फिर लोकल कलाकार डांस करते हैं। और दर्शकों को टीम से कोई लेना-देना नहीं। देशभक्ति तो अपनी जगह है। लेकिन दर्शक सिर्फ और सिर्फ इंजॉय करने के लिए वहां पर जाते हैं। उन्हें हर बॉल पर हर रन पर चिल्लाना है, खुशियां मनाना है। यह बड़ा अच्छा संकेत है कम से कम अति राष्ट्रवाद और किसी देश को लेकर के वह वैमनस्यता वाली बात यहां पर नहीं दिखती है।

आम भारतीयों के जीवन में ऐसी कुछ कमी रह गई है जो उनकी खुशियों में बाधा है इस बाधा को दूर करती है क्रिकेट। जो मैदान में जाकर देखी जाती है। इसे आप  मैदान में जाकर देखें बिना महसूस नहीं कर सकते।

क्रिकेट मैच के ऑर्गेनाइजर आम जनता की इस जरूरत को समझ चुके हैं। इसीलिए इवेंट को इस तरह से रचा जाता है की क्रिकेट सिर्फ और सिर्फ एक मनोरंजन का खेल लगता है। जिसमें कोई देश जीते, कोई देश हरे। जो जनता अपनी पैसे को खर्च कर वहां पर आई है उसका सिर्फ और सिर्फ एक मकसद होता है एंजॉय करना। खुशियां मनाना। यह बात सही है कि अपने देश को हराते हुए देखना किसी को भी अच्छा नहीं लगता है। फिर भी खेल भावना लोगों में अपनी जगह बना रही है।

बॉलीवुड की फिल्में लगातार फ्लॉप हो रही है जिसका टिकट 150 से ₹400 का लेकिन लोग उसे नहीं देखने जाते हैं‌। जबकि क्रिकेट का टिकट 3000 से लेकर 25000 तक है। फिर भी लोग वहां जा रहे हैं क्योंकि वह एंजॉयमेंट, वह दीवानगी जो क्रिकेट में है वह फिल्में नहीं दे पा रही हैं। या कहीं और ऐसा मनोरंजन उनको नहीं मिल पा रहा है।

मुझे लगता है कि एक न एक बार इस तरह स्टेडियम में जाकर क्रिकेट मैच जरूर देखना चाहिए।

https://dailychhattisgarh.com/article-details.php?article=218913&path_article=11

Publish on 2 dec 2023

सोमवार, 17 जुलाई 2023

Pros and cons of uniform civil code समान नागरिक संहिता के नफे नुकसान

 

समान नागरिक संहिता के नफे नुकसान

संजीव खुदशाह

समान नागरिक संहिता, आजकल चारों ओर इस मुद्दे पर चर्चा हो रही है। चर्चा होने का कारण यह है की 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले केंद्र की सरकार (भाजपा सरकार) ने समान नागरिक संहिता लागू करने की बात रखी। प्रधान मंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने इस सं‍हिता को लेकर ब्‍यान दिया। आज हम यूनिफॉर्म सिविल कोड याने समान नागरिक संहिता के तमाम पहलुओं पर बात रखेंगे।

केंद्र सरकार के इस प्रस्ताव का एक तरफ स्वागत हो रहा है तो दूसरी तरफ इसकी निंदा भी की जा रही है। कहा जा रहा है इससे अल्पसंख्यकों के अधिकार का हनन होगा, विविधता की संस्कृति समाप्त हो जाएगी। यह भी कहा जा रहा है की मुसलमानों को ठिकाने लगाने के लिए यह कानून लाया जा रहा है।

वैसे केंद्र सरकार की तरफ से समान नागरिक संहिता का कोई मसौदा प्रस्तुत नहीं किया गया है। इस कारण केंद्र सरकार ठीक-ठीक क्या करना चाहती है, इस कानून को लाने के पीछे उनका क्या मकसद है? यह कहा नहीं जा सकता और जब तक कि मसौदा सामने ना आए तब तक इसके पक्ष या विपक्ष में कहना बहुत जल्दबाजी होगी। यह एक ऐसा मुद्दा है जिसे भा जा पा की मातृ संगठन आर एस एस ने बरसों से यूनिफॉर्म सिविल कोड की बात को रखा है, एक देश एक कानून की बात वे हमेशा कहते आऐ है और देश के बहुत सारे लोगों को इस कानून के पक्ष में राजी भी किया है। उनका तर्क है की महिलाओं और वंचितों को अलग-अलग संस्कृति और कानून के नाम पर शोषण होता है। इस कानून के सहारे उन शोषण को दूर किया जा सकता है। इसीलिए वह इस प्रकार के कानून की वकालत करती है।

संविधान क्या कहता है?

आइए जानने की कोशिश करते हैं कि भारत का संविधान इस मामले में क्या कहता है? जब भारतीय संविधान का निर्माण किया जा रहा था, तब समान नागरिक संहिता की आवश्यकता को महसूस किया गया था। प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉक्टर अंबेडकर भी समान नागरिक संहिता के पक्षधर थे और उसी पर यह काम भी कर रहे थे। भारतीय संविधान की धारा 44 में समान नागरिक संहिता को लागू करने के बारे में लिखा गया है। हिंदू कोड बिल को समान नागरिक संहिता का प्रथम सोपान कहा जा सकता है। जिसमें शादी, तलाक, बच्चा गोद लेना, उत्तराधिकार से जुड़े मामले को शामिल किया गया। जिसका उस समय कट्टर वादियों द्वारा विरोध किया गया था। जैसे कि आप सभी को मालूम है कि डॉक्टर अंबेडकर को कानून मंत्री रहते हुए इस हिंदू कोड बिल को पास ना करवाने के कारण मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि बाद में हिंदू कोड बिल पास हुआ और देश में लागू हुआ। हिंदू कोड बिल में खासतौर पर हिन्‍दुओं के अलावा जैन, सिख, बौद्ध को भी शामिल किया गया है।

संविधान सभा के द्वारा प्रस्तावित समान नागरिक संहिता का लक्ष्य और अभी के सरकार के द्वारा प्रस्तावित समान नागरिक संहिता के लक्ष्‍य में अंतर है। अभी की सरकार किसी खास वर्ग को खुश करने के  लिए यह संहिता को लाने की बात कह रही है। लेकिन संविधान सभा के निर्माण के दौरान संविधान सभा के सदस्यों ने एक ऐसे भारत की कल्पना की जहां पर धर्म के नाम पर, जाति के नाम पर, परंपरा के नाम पर, संप्रदाय के नाम पर, महिलाओं बच्‍चो और बुजुर्गो का शोषण ना हो।

समान नागरिक संहिता में सबसे ज्यादा लाभ महिलाओं को होने वाला है क्योंकि धर्म संप्रदाय जाति वयवस्‍था अक्सर महिलाओं के हितों का दमन करती है। आप इसे एक उदाहरण से समझ सकते हैं मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार एक तलाकशुदा महिला को भरण पोषण का अधिकार नहीं है लेकिन हिंदू ला में यह अधिकार हिंदू महिलाओं को मिलता है।

इसी प्रकार कई आदिवासी समाजों में पिता की संपत्ति पर बेटियों को अधिकार नहीं मिलता क्योंकि यह उनकी परंपरा है, ऐसा उनका दावा है। कानून भी उसी मुताबिक बना हुआ है। जबकि यह अधिकार हिंदू कोड बिल में बेटियों को दिया गया है।

सामान नागरिक संहिता लागू होने पर देश की सारी महिलाओं, बच्‍चों, बुजुर्गो एवं वंचितों को एक जैसा अधिकार प्राप्त होगा। जैसा कि संविधान सभा के सदस्यों ने सपना देखा था।

यानी समान नागरिक संहिता एक सामाजिक मामलों से संबंधित कानून है, जो सभी पंथ के लिए विवाह, तलाक, भरण पोषण, विरासत व बच्चा गोद लेने में समान रूप से लागू होता है। दूसरे शब्दों में कहें अलग-अलग संप्रदायों के लिए अलग-अलग सिविल कानून न होना समान नागरिक संहिता की मूल भावना है।

समान नागरिक संहिता की भारत में क्या है चुनौतियां?

भारत एक ऐसा देश है जहां पर छुआछूत भेदभाव ऊंच-नीच शोषण का बोलबाला है। जहां पर एक जाति दूसरे जाति के समान नहीं है। प्रश्न उठता है कि क्या जब एक जाति दूसरी जाति के समान नहीं है तो समान नागरिक संहिता लागू की जा सकती है। उच्च जातियों द्वारा छोटी जातियों के ऊपर शोषण करने का वीडियो अक्सर वायरल होता रहता है, ऐसी घटनाएं समाचारों में अक्सर आती रहती है। ये घटनाएं इस ओर इशारा करती है कि‍ भारत में समान नागरिक संहिता लागू करने के पहले जातियों में समानता पर लाना होगा। कितनी ऐसी जातियां हैं जिनका प्रतिनिधित्व शासन-प्रशासन में आज भी नहीं है। और कई ऐसी जातियां हैं जो अपनी जनसंख्या के अनुपात से कई गुना ज्यादा प्रतिनिधित्व पर कब्जा बनाए बैठी हुई।

समान नागरिक संहिता पर टिप्पणी करने वालों का यह तर्क है कि भविष्य में समान नागरिक संहिता लागू हो जाने के बाद आरक्षण को भी निशाना बनाया जा सकता है। बुजुर्वा वर्ग इस कोशिश में है की आरक्षण को निष्प्रभावी बना दिया जाए । ऐसा भी हो सकता है समान नागरिक संहिता को लागू करने में आरक्षण एक रोड़े की तरह देखा जाएगा।

इससे ऐसा वर्ग जो अपनी जनसंख्या से कई गुना ज्यादा अनुपात में शासन प्रशासन पर कब्जा बनाए बैठा है। आरक्षण समाप्त हो जाने के बाद उसका कब्जा स्थाई हो जाएगा। और एससी एसटी ओबीसी एवं अल्‍पसंख्‍यक वर्ग हमेशा के लिए शासन प्रशासन से महरूम हो जाएंगे।

यह भी कहा जा रहा है की इस कानून के लागू होने के बाद सबसे ज्यादा नुकसान आदिवासियों का होगा उनकी जमीने छीन ली जा सकेगी। क्योंकि विशेष आदिवासी कानून किसी काम का नहीं रह जाएगा।

दलित आदिवासी जातियों में शादी और तलाक बेहद आम बात है। सामाजिक बैठकों में इन मामलों का निपटारा कर लिया जाता है। समान नागरिक संहिता लागू हो जाने के बाद हर बार कोर्ट जाना पड़ेगा। कोर्ट में भी प्रकरणों की संख्या बढ़ जाएगी।

चाहे जो भी हो हमारे पूर्वजों ने समान नागरिक संहिता का स्वप्न देखा है। जिसे उन्होंने संविधान में दर्ज भी किया है। इसीलिए समान नागरिक संहिता की जरूरत तो है। लेकिन यह देखा जाना होगा कि क्या देश इसके लिए तैयार है

? क्या इस कानून के लागू होने के पहले समानता आ चुकी है? धार्मिक समानता, जातिगत समानता, लैंगिक समानता आ चुकी है? समान नागरिक संहिता के लागू हो जाने के बाद या उसके पहले बहुत सारे ऐसे हितग्राही हैं जो कि धर्म के नाम पर परंपराओं के नाम पर संपत्ति और संस्थाओं पर कब्जा जमाए हुए हैं। उन्हें तकलीफ होगी और वह विरोध भी करेंगे जैसा कि हिंदू कोर्ट भी लागू होने के पहले हुआ था। ऐसा हो सकता है कि महिलाएं भी सामने आए और वह कहेंगे कि हमें अधिकार नहीं चाहिए, यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू मत करो। यह एकदम कॉमन सी बात है जब अमेरिका के गुलामों की बेड़ियां खोलने का आदेश जारी हुआ तो अमेरिका के गुलाम चिल्ला चिल्ला कर रोने लगे और कहने लगे कि यह हमारी बेड़िया नहीं है यह हमारे गहने है। और उसे वह पहनने के लिए जिद करने लगे। बदलाव के समय ऐसा होता है इन सब का मुकाबला करते हुए समान नागरिक संहिता को लागू करना एक चुनौती होगी। देखना यह होगा कि किस प्रकार सरकार तमाम संस्थाओं, संगठनों  के बीच सहमति बनाते हुए यह कानून लागू कर पाएगी।